अजनबी की पहचान

Sunday, May 30, 2010

अनाथ नक्सलवाद का अपहरण


भारत में नक्सवाद का अपहरण हो चुका है...आज नहीं वर्षों पहले हो चुका है....इसके जन्मदाताओं ने उसी वक्त इसे अनाथ भी घोषित कर दिया था....चारू,कानू,जंगल जैसे इसके जन्मदाता अब उपर जा चुके हैं....

ये मनमोहन देसाई की फिल्म नहीं दिखा रहा हूं मैं। सच बता रहा हूं।

Friday, May 28, 2010

ऊंचाई पर पहुंचना आसान टिकना मुश्किल


मेरे एक मित्र(पंकज भूषण पाठक) ने फेसबुक पर लिखा है..."झारखण्ड में दिशोम गुरु के नाम से चर्चित शिबू सोरेन जिन्हें आदिवासी समाज में भगवान के रूप पूजा जाता है आज सत्ता-लोलुपता के पर्याय बने हुए है. किस्मत ने उन्हें तीन बार सीएम की कुर्सी पर बिठाया लेकिन सत्ता सुख़ कभी भोगने नही दिया.मौजूदा हालात में तमाम फजीहत और असम्भावना के बावजूद वो हैं की कुर्सी छोड़ने को तैयार नही. जनता की नजरो में आज वो एक मजाक बनते जा रहे हैं...कौन समझाए इन्हें?"

Wednesday, May 26, 2010

बाबू जी धीरे चलना


प्यार में संभलना थोड़ा मुश्किल होता है। और फिर ये तो कुर्सी का प्यार है। उस कुर्सी का जो साल 2003 से रुठी हुई है। इसलिए बाबूलाल मरांडी जी का मन मचल जाए तो हैरानी नहीं। इसलिए ज़रूरी है कि वो कुछ बातों का ध्यान रखें। ध्यान रखें की दिसंबर 2009 में उन्होंने बर्दाश्त कर लिया था। उस त्याग की भावना, या कहें मजबूरी की वजह से उनकी शख्सियत को जो उंचाई या जो वजन मिला था, उसे कहीं खो ना दें मरांडी।

Friday, May 21, 2010

चुनाव चुनाव चुनाव



झारखंड में विकल्पों की तलाश बेमानी है। किसी नेता में इतना माद्दा नहीं है कि वो खंडित जनादेश के बावजूद अपने लिए विधायकों से सम्मानजनक शर्तों पर समर्थन जुटा सके। व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं से लबरेज हर विधायक अपनी गोटी लाल करना चाहता है। मंत्रीपद से कम का सपना देखना विधायक अपनी हेठी समझते हैं।

Thursday, May 20, 2010

मीडिया-घटिया प्रोफेशनल्स भविष्य के लिए खतरनाक



टेलीविजन न्यूज हो या अखबार- सूचना, मनोरंजन और शिक्षम का ज़रिया हैं। ये बैलेंस शीट का एक कॉलम है। दूसरे कॉलम को देखिए तो ये प्रचार का माध्यम भी हैं। एक को आप कंटेंट कह सकते हैं और दूसरे को विज्ञापन। दोनों के बीच आनुपातिक तालमेल से ही मीडिया का कारोबार चलता है।

Wednesday, May 19, 2010

सिर्फ मैनेजर या लीडर भी


अर्जुन मुंडा एक बार फिर से झारखंड की कुर्सी संभालने जा रहे हैं। बेमेल शादी में तलाक-तलाक का शोर मचाने के बाद फिलहाल समझौते का जो फार्मूला तय हुआ है उसके मुताबिक 28 महीनों के लिए उन्हें ताज मिलेगा। 28 महीनों में वो क्या गुल खिलाते हैं इसपर सबकी निगाहें होंगी। लेकिन मेरी निगाहें इस बात पर होंगी कि कौन-कौन उन्हें बीच रास्ते में गिराने की फिराक मे लगे हैं। सबसे पहले तो जेएमएम के अठारह में से कम से कम चार विधायक ऐसे हैं, जिन्हें एक बार फिर से कड़वा घूंट पीना होगा। साइमन मरांडी का मुखौटा पहनकर बैठे इन विधायकों की संख्या चार से ज्यादा भी हो सकती है। दूसरी तरफ से कांग्रेस खासकर प्रदीप बालमुचू इन लोगों को सह दे रहे होंगे। बाबूलाल मरांडी सरकार के हर कदम पर विधवा विलाप करेंगे। और सबसे बड़ी बात खुद भाजपा के अंदर भी अर्जुन मुंडा की टांग खींचने वालों की कोई कमी नहीं। इस बार अर्जुन मुंडा ने अपने विरोधियों को पटखनी दे दी तो वो सिर्फ इसलिए कि वर्तमान हालात में रांची-दिल्ली के मैनेजमेंट में उनसे ज्यादा कुशल और अनुभवी दूसरा कोई नहीं है। लेकिन चाहे हालात कैसे भी हों, मुंडा सरीखे नेता से जनता डिलीवरी की आशा रखेगी।

Monday, May 17, 2010

ज़रूरी है झारखंड में चुनाव



नेताओं(राजनेताओं) के व्यक्तिगत स्वार्थ को हटाकर देखा जाए तो पिछले चुनाव के बाद से लेकर अब तक न तो झारखंड की जनता ने कुछ हासिल किया ना ही राजनीतिक बिरादरी ने, और आगे भी कुछ हासिल होगा, ऐसा लगता नहीं है। उल्टा राजनीतिक बिरादरी अपनी साख खोती जा रही है। राज्य एक खतरनाक राजनीतिक शून्य की तरफ बढ़ रहा है। ऐसे में जनता की ज़रूरत भी है और जिम्मेदारी भी कि वो बीच बचाव करे। उसका एकमात्र ज़रिया है चुनाव – झारखंड में चुनाव ज़रूरी है।

Sunday, May 16, 2010

बालिका वधू

अक्षय तृतीया
अक्षय तृतीया है.....सभी चैनलों पर एक सप्ताह से सोना बेचा जा रहा है......आज तो बाजार अपने चरम पर है....वैसे सोने का भाव भी चरम पर है.....लेकिन लगता है बालिका वधू की टीआरपी गिर गई है.....वर्ना क्या बात है कि इस बार अक्षय तृतीया पर भेड़ बकरियों की तरह ब्याह दी जानेवाली बालिका वधुओं की कोई चर्चा भी नहीं है.....क्या बाल विवाह वाकई रुक गया है.....क्या छत्तीसगढ़ के उस मंदिर में इस बार मेला नहीं लगा......क्या शारदा एक्ट आखिरकार प्रभावी हो गया है.......दिल्ली में हो रही बीस हजार शादियों की तो खूब चर्चा है.....चैनलों पर दिल्लीवालों के लिए चेतावनी भी है....घर से मत निकलना जाम में फंस जाओगे......बाराती नाचेंगे और आप गाड़ी की एसी खर्च करके इंतजार करोगे......लेकिन इस बात की चर्चा भी नहीं कि अक्षय तृतीया पर कितने अनपढ़ गरीब मां बाप अपनी बच्चियों की शादी कर रहे हैं...

Friday, May 14, 2010

सोचिए! फैसला लेने से पहले


ऑनर किलिंग....यानि आभिजात्य भाव की रक्षा के लिए किसी की जान ले लेना....भारत में ही नहीं....दुनियाभर के देशों में तमाम बहस-मुबाहिसों के बावजूद यदा-कदा ऐसी घटनाएं हो जाती हैं।

Thursday, May 13, 2010

छे महीने का डिप्लोमा


छे महीने बाद घर में छुट्टियों का आनंद ले रहा हूं.....और गर्मी की छुट्टियां तो ना जाने कितने साल के बाद आई हैं मेरे जीवन में.....भविष्य की अनिश्चितता से डर नहीं लग रहा....क्योंकि शायद पहले भी भविष्य इतना ही अनिश्चित था.....बल्कि भविष्य को लेकर एक खुलापन सा महसूस हो रहा है.....वैसे भी जहां पूरे समाज और देश का भविष्य अनिश्चितता के आवरण से झांक रहा है......वहां मैं एक बिन्दू से ज्यादा शायद कुछ भी नहीं.....और ये बिन्दू अगर ढुंढना भी चाहूं तो क्या मिलेगा....वक्त का दरिया अपना रास्ता खुद बना लेता है..

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