अजनबी की पहचान

Wednesday, May 19, 2010

सिर्फ मैनेजर या लीडर भी


अर्जुन मुंडा एक बार फिर से झारखंड की कुर्सी संभालने जा रहे हैं। बेमेल शादी में तलाक-तलाक का शोर मचाने के बाद फिलहाल समझौते का जो फार्मूला तय हुआ है उसके मुताबिक 28 महीनों के लिए उन्हें ताज मिलेगा। 28 महीनों में वो क्या गुल खिलाते हैं इसपर सबकी निगाहें होंगी। लेकिन मेरी निगाहें इस बात पर होंगी कि कौन-कौन उन्हें बीच रास्ते में गिराने की फिराक मे लगे हैं। सबसे पहले तो जेएमएम के अठारह में से कम से कम चार विधायक ऐसे हैं, जिन्हें एक बार फिर से कड़वा घूंट पीना होगा। साइमन मरांडी का मुखौटा पहनकर बैठे इन विधायकों की संख्या चार से ज्यादा भी हो सकती है। दूसरी तरफ से कांग्रेस खासकर प्रदीप बालमुचू इन लोगों को सह दे रहे होंगे। बाबूलाल मरांडी सरकार के हर कदम पर विधवा विलाप करेंगे। और सबसे बड़ी बात खुद भाजपा के अंदर भी अर्जुन मुंडा की टांग खींचने वालों की कोई कमी नहीं। इस बार अर्जुन मुंडा ने अपने विरोधियों को पटखनी दे दी तो वो सिर्फ इसलिए कि वर्तमान हालात में रांची-दिल्ली के मैनेजमेंट में उनसे ज्यादा कुशल और अनुभवी दूसरा कोई नहीं है। लेकिन चाहे हालात कैसे भी हों, मुंडा सरीखे नेता से जनता डिलीवरी की आशा रखेगी।

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