अजनबी की पहचान

Saturday, July 31, 2010

ढलान पर हैं हम

प्रमोद महाजन की मौत से पहले राहुल महाजन को कितने लोग जानते थे और आज उसे कितने लोग जानते हैं ?
ये फर्क कैसे आया? क्या उसने पब्लिसिटी के लिए ड्रामा किया ? क्या उसने पब्लिसिटी के लिए ड्रग्स लिया? क्या वो पब्लिसिटी के लिए जेल गया? क्या पब्लिसिटी के लिए वो अपनी बीवियों को मारता है? क्या उसने पब्लिसिटी के लिए तलाक लिया ? बिग बॉस, स्वयंवर, छोटे उस्ताद और इमोशनल अत्याचार जैसे रियालिटी शो में उसे क्यों बुलाया जाता है ?
राहुल ने जवाब दिया है - नहीं चाहिए ऐसी पब्लिसिटी भइया...पब्लिसिटी को क्या मैं खाउंगा....पब्लिसिटी कोई एटीएम कार्ड है क्या...

Thursday, July 22, 2010

शायद,कोई देखने आ जाए!


"बाबू जी चढ़लन की ना" इन्हीं शब्दों के साथ शुरू होती थी हमारी मंगरॉंव यात्रा। "हां-हां!" करती हुई बिहार राज्य पथ परिवहन निगम की लाल पट्टियों वाली बस हज़ारीबाग डिपो के गेट नंबर दो की तरफ रेंगने लगती। फिर बरही,चौपारण और बाराचट्टी में रूकते-चालान लेते पहुंचती शेरघाटी। हमारे लिए यात्रा का खास आकर्षण हुआ करता था शेरघाटी के होटल का खाना- दाल-भात,आलू की भुजिया,सब्जी,प्याज और पापड़। 'होटल का खाना'- इतने में ही जो संतुष्टि मिलती थी उसे जायका किस मुंह से कहूं। फिर गाड़ी खुलती तो रफीगंग,औरंगाबाद के रास्ते डेहरी-ऑन-सोन तक जाती। वहां से दूसरी बस नासरीगंज तक। बड़का बाबूजी बारहो मास नासरीगंज आते थे।

Tuesday, July 20, 2010

रजमतिया के चिट्ठी


नेट पर मिली है मुझे रजमतिया की चिट्ठी। लगा जैसे पुराने प्रेम पत्रों वाला टिन का वो डब्बा मिल गया,जिसे पता नहीं कहां रखकर मैं भूल गया और जब याद आया तो ये भूल गया कि कहां रखा था। 'रजमतिया के चिट्ठी' एक भोजपुरी लोकगीत है। इसमें मुझे पूर्वांचल का रेखाचित्र दिखाई देता है, इसमें किसान के मजदूर में तब्दील होने की कहानी है। इसके बावजूद उसे और उसके परिवार को सिर्फ जीने भर की छूट मिली है। गरीबी की वजह से बेनूर लेकिन मर्यादा की वजह से गंभीर जिन्दगी ट्रेजेडी में कॉमेडी खोजती दिखाई देती है।

Sunday, July 18, 2010

'बिहारी' के बहाने

फेसबुक पर बिहार के विकास पर पोस्ट और टिप्पणियों के माध्यम से चर्चा के दौरान मिली एक टिप्पणी
BIHAR MATLAB BIMAR, KARM AUR SOCH DONO SE, A STATE WHICH IS CANCER FOR THE COUNTRY.

लोकतंत्र है, अभिव्यक्ति की आज़ादी है। आजादी और उदंडता के बीच बड़ी बारीक सी विभाजन रेखा है, कभी -कभी लोग सीमा पार कर जाते हैं। लेकिन बिहार के प्रति इतनी कड़वाहट क्यों है ? यहां बहस का मुद्दा ये था कि नीतीश कुमार ने 'ऊंट के मुंह में जीरा' बराबर भी काम किया है या नहीं। बहस करनेवाले ज्यादातर लोग पत्रकार थे। नीतीश कुमार ने कुछ नहीं किया ये साबित करने के लिए पूरे राज्य को कोसना, कैंसर तक कह देना - आखिर इस मानसिकता के पीछे क्या है? बिहारियों के खिलाफ, ये एक तरह से 'पेटी के नीचे का प्रहार'( hitting below the belt) है। इसलिए बिहारी भड़क जाता है। क्या करे, या तो अपमान का कड़वा घूंट पी ले या फिर जुट जाए जूतम-पैजार(जुबानी या जिस्मानी) में। और असल बात पर किसी का ध्यान नहीं जाता।

Friday, July 16, 2010

इतना सन्नाटा क्यों है भाई !चैप्टर - 2


झारखंड बीजेपी क्या कर रही है? अर्जुन मुंडा कहां हैं? क्या राष्ट्रपति शासन लगते ही सब ठंडे हो गए? क्या इसके बाद फिर चुनाव नहीं होंगे? जेएमएम के साथ सरकार बनाने में तो बड़ी उतावली थी। अठारह सीटों से भी नीचे गिरने का इरादा है क्या? पिछले छे महीनों में बीजेपी ने जो चाल चरित्र चेहरा दिखाया है, उसमें करेक्शन की कोई गुंजाइश भी नहीं ढुंढी जा रही है। पिछले चुनाव में ये अनुमान लगाया जा रहा था कि बीजेपी अगर मजबूत नहीं भी हुई तो अपने पुराने पोजीशन को बरकरार रखेगी। लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा। ज्यादा जोगी मठ उजाड़ वाली कहावत चरितार्थ हुई

Wednesday, July 14, 2010

प्रतीकों से खेलते नीतीश



बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नरेन्द्र मोदी से परहेज है लेकिन आनंद मोहन से प्यार है। दोनों के राजनीतिक मायने हैं । नीतीश इन दोनों को राजनीतिक प्रतीकों के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें विश्वास है कि जनता ऐसे प्रतीकों से प्रभावित होती है। सुशासन बाबू बड़ी ही चालाकी से एक प्रतीक पर हमला करके और दूसरे प्रतीक को फुसला करके दो बड़े वोट बैंकों में अपना शेयर बढ़ाना चाहते हैं और लगता नहीं कि इसमें उन्हें कोई खास दिक्कत आएगी।

Tuesday, July 13, 2010

इतना सन्नाटा क्यों है भाई !

झारखंड में एक बार फिर से राजभवन का शासन है। दूसरे शब्दों में कहें तो लोकतंत्र निलंबित है। ऐसा नहीं लगता कि चुने हुए प्रतिनिधि सरकार बनाने का रास्ता ढूंढ पाएंगे। साफ है कि अगला पड़ाव है चुनाव। लेकिन उससे पहले कई सवाल हैं - चुनाव कब होंगे ? और चुनाव होने तक सबकुछ किस तरह चलेगा ? पिछली सरकार जबर्दस्ती बनाई गई थी, अकाल काल का ग्रास बन गई। चुनाव के बाद भी अगली सरकार की क्या संभावनाएं हैं ? पिछले साल की जनवरी से ही राज्य तत्काल व्यवस्थाओं के हवाले है। ऐसा कबतक चलेगा ? सवालों की कमी नहीं है, मगर जवाब कहीं नहीं है। झारखंड में गतिविधियों की कमी नहीं है - मगर असली सवालों के डेरे में सन्नाटा पसरा हुआ है।

Tuesday, July 6, 2010

सेलेब्रेटी नहीं नायक है माही

मैं क्रिकेट फैन नहीं हूं, मगर धोनी का फैन हूं, क्योंकि इसने कहीं ना कहीं मेरे निजी आत्मविश्वास को एक मजबूत आधार दिया है। इसने भय-भूख-भ्रष्टाचार के बीच छटपटा रहे झारखंड को एक अच्छी, बहुत अच्छी पहचान दिलाई है। इसने बड़े ही सीधे तरीके से ये साबित कर दिया कि बेहद साधारण पृष्ठभूमि और बिना किसी भगवान-बाप(गॉडफादर) के उपलब्धियों के आसमान पर सितारा बनकर चमका जा सकता है, बशर्ते कि आपके

Saturday, July 3, 2010

चोर चोर मौसेरे भाई

 
रजरप्पा में छिन्नमस्ता का मंदिर
रजरप्पा के छिन्नमस्तिका मंदिर में चोरी हो गई। चांदी का छत्र और मां के आभूषण ही नहीं, चोरों ने मूर्ति में लगी सोने की आंखें भी निकाल लीं। इतना ही नहीं मूर्ति को भी काफी नुकसान पहुंचाया गया है। सबकुछ रहते हुए भौतिक उन्नति को तरसते राज्य में देवी-देवता भी सुरक्षित नहीं हैं। कमाल की बात है कि इसका ध्यान तब आया है जब एक बड़ा नुकसान हुआ। 

शेयर