
प्यार में संभलना थोड़ा मुश्किल होता है। और फिर ये तो कुर्सी का प्यार है। उस कुर्सी का जो साल 2003 से रुठी हुई है। इसलिए बाबूलाल मरांडी जी का मन मचल जाए तो हैरानी नहीं। इसलिए ज़रूरी है कि वो कुछ बातों का ध्यान रखें। ध्यान रखें की दिसंबर 2009 में उन्होंने बर्दाश्त कर लिया था। उस त्याग की भावना, या कहें मजबूरी की वजह से उनकी शख्सियत को जो उंचाई या जो वजन मिला था, उसे कहीं खो ना दें मरांडी।