अजनबी की पहचान

Tuesday, August 10, 2010

लौण्डे का नया अवतार : मुन्नी


'लौंडा बदनाम हुआ नसीबन तेरे लिए' - भोजपुरी और उससे मिलती-जुलती बोलियों में प्रचलित ये गीत हिन्दी भारत की गलियों में न जाने कब से थिरक रहा है। मानव मन के वर्जित प्रदेशों में ताक-झांक करता ये गीत प्रचलन में देश-काल की सीमा लांघता हुआ बॉलीवुड पहुंग गया तो हैरानी नहीं हुई, मज़ा आया। उम्दा रचना ज़रूरत के मुताबिक ढलने में दिक्कत नहीं करती, इसलिए 'लौंडा' 'मुन्नी' बन गया और 'नसीबन' 'डार्लिंग'। असल बात तो बदनामी के सेलीब्रेशन में है। देखिए पहले लौंडा नाचा, अब मुन्नी यानि मलाइका नाच रही है, साथ में नाच रहा है सलमान। अब देश भर के डिस्को थेक इसकी धुन पर नाचेंगे, पेज थ्री के मेहमान नाचेंगे। हो सकता है बिहार के चुनाव में कोई पार्टी इसकी पैरोडी बनाकर अपने कार्यकर्ताओं को नचाने लगे। कॉलर ट्यून बजेगी तो फोन करने वाला भी खड़ा-खड़ा ही सही मगर लचकेगा ज़रूर । दरअसल धुन इतनी लचकदार है कि नचाकर मानती है, उपर से बोल।



भोजपुरी प्रदेशों में शादी व्याह जैसे तमाम उत्सवों में नाच-गाने का प्रचलन रहा है। ये अलग बात है कि नाचने-गाने वाले पेशेवर लोग धीरे-धीरे हाशिए पर पहुंच गए लेकिन आज हम उनका संगीत एडॉप्ट कर रहे हैं। वहां नाचने-गाने का काम करते थे बाई जी और उनके बजनियां, या फिर किसी लौंडे की नाच-पार्टी।
'नसीबन तेरे लिए....'.....यहीं पर लगता कि तबलची डुग्गी फाड़ देगा। सारे लोग एक साथ कंधे मटकार शोर मचा देते। बाप महफिल में आगे बैठकर रुपया उड़ाता और बेटा पीछे छिपकर अंगोछा उछालता । मनमौजी छोकरे बीच में जाकर ठुमका प्रतियोगिता भी शुरू कर देते । गैसबत्ती की कमजोर रोशनी में इतना अंधेरा मौजूद था कि लुकाछिपी करते हुए नचनिया सबकी आंखे तर कर देता और गीत मन का वर्जित कोना भर देता । फिर आया जेनरेटर, रोशनी बढ़ी और शोर भी बढ़ा। जेनरेटर की आवाज़ को चापकर लाउडस्पीकर से जब हारमोनियम और बाई जी के मिलेजुले सुर एकसाथ निकलकर दौड़ते तो लगता कि खेत-बधार को सरसराते हुए नदी के उस पार जाकर बैठते होंगे। वो महफिल तब आम थी और खास भी। बड़े लोगों के यहां मिट्टी पर दरी बछी होती, उपर सामियाना तना हुआ होता। साधारण आदमी दुअरा-दलान पर नाच करवा लेते। मगर शहर से देहात की तरफ लपकती व्यावसायिक मनोरंजन की दुनिया ने इसे पेशे को खेदेड़ना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे भद्र समाज ने मुंह मोड़ लिया और फिर कैसेट-सीडी ने साधारण लोगों को भी इससे दूर कर दिया। परंपरा किसी तरह अब भी सांसे ले रही है, मगर ऐसा लगने लगा है कि दिन पूरे हो चुके हैं।

परंपराएं बनती-छूटती रहती हैं, लेकिन कला कभी मरती नहीं। वो रूप बदलकर नई जिन्दगी पा लेती है। नौटंकी की शैली वेश बदलकर जब-तब सामने आती रहती है। लौंडा भी मुन्नी बनकर माडर्न हो गया है। मगर चोर चोरी से जाएगा, हेराफेरी से नहीं। देखिए मार्डन होते ही इसने जेठ और भावज को नचा दिया। सलमान खान इस गीत में अपनी असल जिन्दगी की भावज मलाइका के ठुमकों पर मरा जा रहा है। अब आपके यहां भी शादी व्याह होगा तो डीजे पर बजेगा.....मैं झंडुबाम हुई डार्लिंग तेरे लिए......लेकिन जिन्होंने कभी सुन रखा है....उनके मन में गुंजेगा....लौंडा बदनाम हुआ नसीबन तेरे लिए।

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