अजनबी की पहचान

Saturday, July 3, 2010

चोर चोर मौसेरे भाई

 
रजरप्पा में छिन्नमस्ता का मंदिर
रजरप्पा के छिन्नमस्तिका मंदिर में चोरी हो गई। चांदी का छत्र और मां के आभूषण ही नहीं, चोरों ने मूर्ति में लगी सोने की आंखें भी निकाल लीं। इतना ही नहीं मूर्ति को भी काफी नुकसान पहुंचाया गया है। सबकुछ रहते हुए भौतिक उन्नति को तरसते राज्य में देवी-देवता भी सुरक्षित नहीं हैं। कमाल की बात है कि इसका ध्यान तब आया है जब एक बड़ा नुकसान हुआ। 


रामगढ़ जिले में दामोदर और भैरवी (भेड़ा) नदी के संगम पर स्थित ये मंदिर निर्विवाद तौर पर झारखंड का सबसे लोकप्रिय धार्मिक केन्द्र है। इस मंदिर की चर्चा झारखंडी लोग बड़ी आस्था,श्रद्धा, विश्वास और  गर्व से करते हैं। मां छिन्नमस्ता के भक्त झारखंड के अलावा बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा तक से यहां पूजा-पाठ करने आते हैं। मोटे अनुमान के मुताबिक औसतन तीन हजार लोग प्रतिदिन यहां दर्शन-पूजन करने आते हैं। मां के भक्तों में अमीर-गरीब सब शामिल हैं। बिहार-झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में जितने भी नए व्यावसायिक वाहन खरीदे जाते हैं उनमें से ज्यादातर को काम पर भेजने से पहले रजरप्पा लाया जाता है - मां का आशीर्वाद लेने। झारखंडी समाज के तमाम प्रभावशाली लोग यहां झोली फैलाने आते हैं। यहां साल भर शादियां होती हैं, मुंडन होते हैं। मां छिन्नमस्ता को दस महाविद्याओं में से एक माना गया है। रजरप्पा को भक्त सिद्धपीठ मानते हैं। तांत्रिक साधना में छिन्नमस्ता को खास अहमियत दी जाती है। यानि जैसा कि भक्त लोग कहते हैं - मां की महिमा अपरम्पार है। 

रोज संध्या-आरती के बाद मंदिर का पट बंद कर दिया जाता है। फिर सुबह आरती के लिए पट खोले जाने तक कोई भी परिसर में पैर नहीं रखता। मान्यता है कि मंदिर जागृत है और मां उग्रचण्डी, इसलिए मां के एकान्त में खलल डालने का मतलब है अनिष्ट को न्योता देना। तो क्या इसी मान्यता के आधार पर इस मंदिर की सुरक्षा की आवश्कता समाप्त हो जाती है ? रामगढ़ पहले अनुमंडल (सब डिविजन) था, अब जिला बन गया है। जिला प्रशासन को कभी ये नहीं सूझा कि मंदिर में मौजूद सोना-चांदी चोरों को न्योता दे रहे हैं। 

तो क्या चोरों ने मां से क्षमा मांगकर वर्जित काल में मंदिर में प्रवेश किया होगा ? 
- मां, क्षमा करो। औरों की तरह हम भी कुछ लेने आए हैं। सबको परोक्ष देती हो हमें सामने जो है वो ही दे दो। चोर-डाकुओं से तो तुमने कभी परहेज नहीं किया मां। हमें विश्वास है हमें भी अपनी ममता की छावं में रखोगी। इस प्रदेश के तमाम लुटेरे तुम्हारे दर पर आते हैं मां। बाजे-गाजे के साथ आते हैं मां। नाते-रिश्तेदारों, समर्थकों को लेकर आते हैं मां। जयघोष करते हुए आते हैं मां  कि तुमने उनकी झोली भर दी, जो मांगा था उससे ज्यादा दिया। दर्जन के हिसाब से खस्सी-बलि चढ़ाते हैं। हमें भी दे दो मां। क्या होगा? सुबह थोड़ा शोर मचेगा, राजभवन से गुमाश्ता आएंगे, पीछे-पीछे नेता आएंगे, रांची से आएंगे पत्रकार और जयपुर से मूर्तिकार। कोई थोड़ा गुस्सा होगा, कोई थोड़ा शर्मिंदा होगा, कुछ लोग बोलेंगे, कुछ अपने गुनाहों की माफी चाहेंगे। फिर थोड़े दिन में सबकुछ सामान्य हो जाएगा। हम अपना माल ठिकाने लगाएंगे और फिर खस्सी लेकर ज़रूर आएंगे मां।
- और इससे तुम्हारी सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल भी तो उठेंगे। सवाल उठेंगे तो जवाब भी मिल जाएगा। चार-सोलह की नियुक्ति हो जाएगी या क्या पता कंपनी मिल जाए। फिर कोई तुम्हारी तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखेगा। आंखे फाड़-फाड़कर देखेगा। बताओ कौन सा ऐसा देवी-देवता है इस देश में जिसके आस-पास खाकी वर्दी पहरा नहीं लगाती। तुम्हारे तो लाखों भक्त हैं। किसी ने सोचा अब तक। हमने सोचा है मां। यहां छुटभैये भी बॉडीगार्ड लेकर घूमते हैं। बेशर्म तुम्हारे दरबार में भी आ जाते हैं। और तुम इन पंडों के भरोसे बैठी रहोगी। 
-पब्लिसिटी ! जरा ये तो सोचो कि हम पब्लिसिटी इवेंट क्रिएट कर रहे हैं। कलियुग में सबको अन्न-धन-पूत देने वाली मां, तुम्हारी पब्लिसिटी तुम्हारी महिमा दिग-दिगंत तक पहुंचा सकती है। पत्रकार से लेकर चैनल-अखबार के मालिक तक, सब तुम्हारे भक्त हैं। बस तुम्हार आशीर्वाद बनाए रखना।
-हमारी भोली-भाली मां। बातों-बातों में काम कब खत्म हो गया पता ही नहीं लगा। हमारे काम को पूजा समझना मां और मंत्र नहीं आते ना इसलिए बातें करता रहा। 
-चलता हूं मां। अंत में बस एक बात और मां -  क्षमा।






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