अजनबी की पहचान

Monday, August 1, 2016

बाजार वाली Hindi और हिन्दी का बाजार - 2


बाजार का पिछलग्गू लोकतंत्र का नायक नहीं हो सकता। नायकत्व तो बाजार को दिशा देने में निहित है। भारत के मोदी तत्व में कितनी दृष्टि है, इसकी परीक्षा जारी है। 

31 जुलाई 2016 को सबसे लोकप्रिय सर्च इंजन Google ने प्रेमचंद के स्केच को doodle पेज पर जगह दी। भारतीय बाजार की यह अपने तरह की समझ है जिसमें प्रेमचंद के बहाने हिन्दी जगत को संदेश भी दिया गया है। साफ है कि न सिर्फ Google बल्कि दुनियाभर का बाजार भारत से हाथ मिलाने के लिए भारतीयता सीख रहा है, लोगों से जुड़ रहा है। वैसे Google के रणनीतिकार क्या समझते हैं, यह बहुत बड़ा रहस्य नहीं हो सकता लेकिन हम भारतीय लोग अब तक इस तरीके से नहीं सोच पाए हैं। हम आज भी अपने ही प्रश्नों में उलझे हुए हैं।
हिन्दी क्या भारत की अनेक भाषाओं में से एक भाषा भर है या यह भारतीय भाषाओं की श्रृंखला की आधुनिकतम और सबसे सशक्त कड़ी है? 



बाजार क्या मजबूरन हिन्दी को अपना रहा है या फिर बाजार पर कब्जे वाला उच्च मध्य वर्ग अंग्रेज हो चुका है इसीलिए वह अवरोध कर रहा है अन्यथा हिन्दी ही भारत की नैसर्गिक भाषा और जीवन शैली है?
उत्तर हम सबके मन में है - हिन्दी भारत की आधुनिकतम औऱ सबसे सशक्त भाषा है, पूरे भारत की, सिर्फ हिन्दी प्रदेशों की नहीं। विन्ध्य के भौगालिक विभाजन का असर कब का खत्म हो चुका है।  हिन्दी न सिर्फ भाषा है बल्कि भारत की नैसर्गिक जीवन शैली भी है। 
सनद रहे कि हिन्दी को लेकर प्रश्न उठते रहे हैं और विवाद भी होते रहे हैं - खासकर राष्ट्रभाषा और राजभाषा के मसले को लेकर। फिर भी एक ऐसे दौर में जब राष्ट्रवाद, राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रशक्ति बहस के केन्द्र में है और हम तकनीकों के माध्यम से सबको जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, हिन्दी से जुड़े सवालों के जवाब बहुत बड़ा अंतर पैदा कर सकते हैं - बाजार में भी और सरकार में भी। 

जिस उत्तर प्रदेश के लमही गांव से प्रेमचंद जैसा रचनाकार फूटा था उसी उत्तर प्रदेश में चुनाव है। आम चुनाव में 73 सीटों पर विजय पताका फहराने वाली बीजेपी के, विधानसभा चुनाव के नाम पर पसीने छूट रहे हैं। दिल्ली और बिहार के बाद तीसरे हिन्दी प्रदेश के महाभारत में उतरने से पहले क्या  मोदी और अमित शाह चुनावी गीता पढ़ पाएंगे? 
बाजार राजनीति से हमेशा एक कदम आगे रहा है। बाजार वह समझ रहा है जिसे हमारा उच्च मध्य वर्ग समझने में देरी कर रहा है। बाजार नया वर्ग गढ़ रहा है जो लोकातंत्र को बाजारू बना रहा है और बाजार को भाषाई लोकतंत्र से जोड़ रहा है। 
इन अंतर्सम्बंधों को समझना इतना आसान नहीं है लेकिन मुश्किल प्रश्नों का हल ढूंढे बगैर न तो बाजार बढ़ सकता है औऱ ना ही देश। बाजार का पिछलग्गू लोकतंत्र का नायक नहीं हो सकता। नायकत्व तो बाजार को दिशा देने में निहित है। भारत के मोदी तत्व में कितनी दृष्टि है, इसकी परीक्षा जारी है। 

1 comment:

  1. सही बात है, बाजार तो हिन्दी का महत्व तो समझने लगा है,परन्तु कथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग अभी भी हिन्दी को दीन हीन ही समझते हैं । परन्तु इसके लिये हम हिन्दीभाषी हीं जिम्मेदार हैं ।

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