अजनबी की पहचान

Tuesday, June 29, 2010

निराशा की लहरों में उमंग की तरंग

झारखंड में आमजन निराश है और खास लोग चाहते हैं कि ये माहौल बना रहे। दरअसल दस साल के इस राज्य में जो लोग उभरे हैं उनमें ज्यादातर में इस आत्मविश्वास की घोर कमी है कि उन्होंने जो हासिल किया है वो उसके लायक हैं। उन्हें लगता है कि वो निराशा के माहौल और मौकापरस्ती के हुनर की वजह से उभर पाए हैं। ऐसा लगना काफी हद तक स्वाभाविक है और ऐसे लोग झारखंड समाज के हर तबके के मौजूद हैं- राजनीति में, व्यवसाय में, सामाजिक क्षेत्र में, शिक्षा जगत में, यहां तक कि सिविल सेवा की कठिन बाधा लांघकर आने वाले नौकरशाह भी इस ग्रंथि से मुक्त नहीं हैं।
ये सभी यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं क्योंकि ये सभी लोग सुविधाभोगी हो चुके हैं। छोटे राज्य में मामूली सी उपलब्धि भी आपको बड़ी पहचान दिला देती है – फिर उसको आप जितना भुना सकें भुना लें। निराशा से भरा हुआ आम जनमानस हैरान होकर देखेगा और उसकी कुंठा आपको अपनी प्रशंसा लगेगी।
इस तरह एक अंधा कुआं खोद लिया जाएगा और उसमें बैठकर खासो-आम टर्र-टर्र करेंगे। फिर चाहे इस कुएं में हजारों विषधर भी डेरा जमा लें, आपको फर्क नहीं पड़ेगा। आपको यथास्थिति सुविधाजनक लगती है तो आप समस्याओं को देखकर भी उनसे आंख चुरा लेते हैं।
एक उदाहरण लीजिए- सब मानते हैं कि माओवादी आतंक राज्य की सबसे बड़ी समस्या है, लेकिन ये टर्र-टर्र है। अंदर-अंदर सब खुश हैं। प्रभावित इलाकों में नेता को जाने की ज़रूरत नहीं, वोटों का थोक व्यापार जारी है। व्यवसाय वहां खान-खनिज का होता है, भय के माहौल में नियम-कानून ताक पर रहता है। भूख और गरीबी संगीनों की सुरक्षा में पल-बढ़ रहे हैं समाजसेवा के लिए इससे अच्छा माहौल और कहां मिलेगा। स्कूलों में या तो अर्धसैनिक बल रहते हैं या ढोर-डांगर, पढ़ाने जाने की ज़रूरत नहीं। अस्पताल में क्या है क्या नहीं, कौन पूछने जाएगा। ठेकेदार ने काम किया या नहीं किया इसका हिसाब किताब लेवी में हो जाता है। अफसर कागज पर काम कर लेते हैं। सबके लिए स्थिति सुविधाजनक है। चारों तरफ कुपमंडुकता का माहौल है।
ऐसा नहीं है कि इसमें खलल नहीं पड़ता। खलल पड़ता है। बीडीओ का अपहरण हो जाए तो खलल पड़ता है। ट्रेन की पटरी उड़ा दी जाए तो खलल पड़ता है। चक्रधरपुर रेल मंडल में रात को ट्रेनें बंद हो जाएं तो खलल पड़ता है। और भी कई वजहों से खलल पड़ता है। लेकिन थोड़ी बहुत कसमसाहट के बाद सबकुछ स्वीकार कर लिया जाता है। जैसे जाड़े के दिन में शंका होने पर भी रजाई से बाहर नहीं निकला जाता। बहुत हुआ तो बेशर्मी से अर्ज करते हैं कि पेट की गर्मी पेट के अंदर ही रहे तो अच्छा है, जाड़ा कम लगेगा। जानते हैं कि ये प्रवृति किडनी चौपट कर देगी। मगर जब संसार रजाई के अंदर हो तो खुली आंखों के आगे भी अंधेरा होता है।
यही रवैया हर समस्या को लेकर बना हुआ है। समस्याओं में सुविधा ढुंढ ली जाती है। नेता भ्रष्ट हैं तो अफसर को भी छूट है। अफसर बेइमान तो ठेकेदारों की चांदी। भर्तियों में घोटाला है तो सगे-संबंधियों का बोलबाला है। काला धन बढ़ता है तो चुनाव में स्कार्पियो बंटता है।
कुल मिलाकर एक आम झारखंडी की जद्दोजहद समाज के उस उपरी सतह में जगह बनाने की है जो मिल-बांटकर सुविधावों का भोग करता है। इससे अलग सोचने वाले नई पीढ़ि के लोग प्लस टू करने के बाद बाहर पढ़ने चले जाते हैं और फिर लौटकर नहीं आते। ये उपरी सतह के लोग लगातार आपस में एक दूसरे को ट्रेनिंग भी देते रहते हैं कि कैसे बाकी लोगों को निराशा में घेरे रखना है। इसमें मीडिया एक बड़ी भूमिका निभा रहा है। मीडिया के लोग उपरी सतह में ना होते हुए भी उसे अपनी बपौती मानते हैं। इसलिए उसके मनमुताबिक काम करते हैं।
लोकतंत्र में आदर्श स्थिति ये हो सकती है कि हर आदमी को बराबरी का दर्जा न सिर्फ मिले बल्कि महसूस भी हो। लेकिन इस ढांचे में जीने के लिए हर आदमी को लोकतांत्रिक मिजाज भी विकसित करना होगा। भारत में दोनों लिहाज से एक लम्बा सफर बाकी है। संविधान और व्यवस्था ने सिद्धांत रूप में हर आदमी को बराबरी का दर्जा स्वीकार किया है लेकिन लोग अभी तक ऐसा महसूस नहीं कर पा रहे हैं। दूसरी तरफ लोग भी सामंतवादी स्वप्नलोक से बाहर आने को तैयार नहीं दिखते। लेकिन हर नई पीढ़ि में इस लिहाज से स्वत: सुधार दिखाई देता है।
झारखंड को बने हुए दस साल हुए हैं और परिस्थितियां भयावहता की हद तक प्रतिकूल हैं। फिर भी नई पीढ़ियां अंगड़ाई ले रही हैं। समाज में एक परत ऐसी तैयार हो रही है जो तरंग पैदा करने को बेताब है। उपरी सतह में जमे लोग पत्थर की पपड़ी की तरह झड़ने लगे हैं। ये समय परिवर्तन का है। जागो झारखंड जागो।


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7 comments:

  1. जिन्दा लोगों की तलाश!
    मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!


    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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    सच में इस देश को जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    हमें ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

    (सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
    राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
    ===================================
    http://baasindia.blogspot.com/
    http://presspalika.blogspot.com/

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  2. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  3. अच्छा लगा आपका हिंदी में ब्लॉग लेखन; बधाई।
    अब आप अजनबी नहीं रहे, मगर अच्छा लेखन चलता रहे, इस कामना के साथ - आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है!

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  4. रौशन जी,पुरुषोत्तम जी,अजय जी ,राकेश जी और हिमान्शु जी आप सभी का धन्यवाद। आपकी सलाह बेशकीमती है। पुरुषोत्तम जी आपकी लेखनी ने संस्थान के प्रति जिज्ञासा पैदा कर दी है।

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  5. आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा। अपनी लेखनी यूं ही जारी रखें। चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। हिंदी ब्लागिंग को आप और ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है।
    ब्लागिंग के अलावा आप बिना किसी निवेश के घर बैठे रोज 10-15 मिनट में इंटरनेट के जरिए विज्ञापन और खबरें देख कर तथा रोचक क्विज में भाग लेकर ऊपरी आमदनी भी कर सकते हैं। इच्छा हो तो यहां पधारें-
    http://gharkibaaten.blogspot.com

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  6. इस चिट्ठे के साथ हिंदी चिट्ठा जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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