अजनबी की पहचान

Thursday, June 24, 2010

प्रलय की तैयारी!

गर्मी सबके सिर चढ़कर बोल रही है। जहां बारिश हो चुकी है और मौसम ठीक हो गया है वहां भी गर्मी की ही चर्चा है। सच पूछिए तो लगता है जैसे ग्लोबल वार्मिंग अखबारों-किताबों से निकलकर बदन पर लिपट गया है। साल में एकाध दिन रिकार्ड तोड़ तापमान एक बात है और लगातार ऊंचे तापमान पर जीने की मजबूरी एक और बात। मन में सवाल उठता है कि क्या ये गर्मी प्रकृति का कोई संदेश देना चाहती है। विद्वान लोग प्रकृति से खिलवाड़ और संसाधनों के विवेकहीन दोहन के प्रति चेताया करते हैं, लेकिन अब तो लगता है खुद प्रकृति आगे आकर चेता रही है।

बच-बचाकर रहने पर तो ये हाल है, अगर आदमी खुले में पकड़ा जाए तो ये गर्मी निश्चित तौर पर जानलेवा साबित होगी। लेकिन अभी तक लोग ये नहीं स्वीकार कर पाए हैं कि ये एक सार्वजनिक समस्या है और इसका व्यक्तिगत तौर पर अपनाया गया कोई भी उपाय फौरी राहत ही दे सकता है, स्थायी समाधान नहीं। एसी से ज्यादा बड़ी सोच अभी तक पैदा नहीं हुई है। पैदा होनी चाहिए, नहीं तो समस्या विकराल होती जाएगी- समस्या सिर्फ बदन को महसूस होने वाली गर्मी नहीं, समस्या ग्लेशियर(हिमनदियों के पिघलने) और समुद्र का जलस्तर बढ़ने, बड़े पैमाने पर भौगोलिक परिवर्तन जैसी भी होगी। इससे निपटने के लिए वैज्ञानिक शोध ही नहीं वैज्ञानिक सोच की भी ज़रूरत होगी। इतिहास पुराण में प्रलय की जो चर्चाएं मिलती हैं, वो कहीं फिर से सामने ना आए, विकास की असली परीक्षा तो यही होनी चाहिए। सोचना ही होगा कि विकास के साथ-साथ कहीं हम प्रलय की तैयारी भी तो नहीं कर रहे हैं।


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