घोड़ा ढाई घर की चाल चलता है-बीच के मोहरों को लांघकर। घोड़ा मारता तो एक बार में एक ही मोहरा है, मगर डराता एक साथ आठ को है। इसलिए घोड़े की अगली चाल समझ में नहीं आती,भेजा खराब हो जाता है।
नीतीश कुमार शुरू से ढाई घर चलते रहे हैं। लालू इसको थोड़ा दूसरे तरीके से समझाने की कोशिश करते हैं। लालू कहते हैं कि नीतीश के पेट में दांत हैं , यानि जब वो किसी को निवाला बनाते हैं तो कोई तकलीफ नहीं देते , बड़े आराम से निगलते हैं-बिना दांत गड़ाए फिर जब शिकार पेट में चला जाता है तो आराम से चबा जाते हैं।
नरेन्द्र मोदी को नीतीश ने गुजरात दंगों के बाद ही निगल लिया था। बिहार के पिछले चुनावों में, और फिर लोकसभा चुनावों में हल्के-हल्के चबाया। बिहार में फिर से चुनाव आ गए हैं । अब एक बार और जुगाली की है। मगर जुगाली पेट में हुई है और दर्द मोदी को नहीं, पूरी बीजेपी को हो रहा है।
पांच करोड़ की सहायता राशि वापस करके नीतीश ने ऐसी चाल चल दी है कि अगली चाल अब लालूजी को भी समझ नहीं आ रही है , बाकी राजनीतिक विश्लेशकों की क्या बात करें। नीतीश ने 'चित भी मेरी पट भी मेरी' का दाव मारा है। बीजेपी खिसिया सकती है , मगर कर क्या सकती है । अंदरूनी लड़ाई से उबर नहीं पाई , गठबंधन तोड़कर कहां जाएगी । कांग्रेस ताक लगाए बैठी है , मगर पहले उधर तलाक तो हो । लालूजी नीतीश की चालबाजी समझ भी रहे हों तो कहें क्या । अप्रत्यक्ष रूप से मोदी का समर्थन करने की तोहमत लग गई तो माई का एम इस बार पूरा साफ हो जाएगा ।
अब बीजेपी को सोचना है कि बिहार में सत्ता बचानी है या फिर राष्ट्रीय दल की जायज हैसीयत । झारखंड में मिट्टी पलीद कराने के बाद गड़करी के लिए ये दूसरा झटका है । लेकिन बीजेपी चाहे जिस राह चले , नीतीश के दोनो हाथ में लड्डू है।
बीजेपी अगर थोड़ी ड्रामेबाजी के बाद ठंडी हो जाती है तो गठबंधन जस का तस रहेगा । मगर तब भी अल्पसंख्यकों को नीतीश का साफ संदेश मिलेगा - बीजेपी साथ है मगर औकात में रहेगी । कांग्रेस का अल्पसंख्यक अध्यक्ष वाला दाव बेअसर हो सकता है । लालूजी के जुबानी जमा खर्च से उब चुके अल्पसंख्यक और बड़ी तादाद में नीतीश के पास इकट्ठा हो सकते हैं।
बीजेपी अगर खिसियाएगी भी तो खंभा नोचेगी , क्योंकि नीतीश से अलग होकर वो ज्यादा से ज्यादा अगड़ों का एक वर्ग अपने साथ ले जाएगी ।मगर उसकी भरपाई करने के लिए कांग्रेस तैयार खड़ी है। ऐसी भूल करके पार्टी कुल्हा़ड़ी पर टांग क्यों मारेगी।
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