अजनबी की पहचान

Sunday, May 30, 2010

अनाथ नक्सलवाद का अपहरण


भारत में नक्सवाद का अपहरण हो चुका है...आज नहीं वर्षों पहले हो चुका है....इसके जन्मदाताओं ने उसी वक्त इसे अनाथ भी घोषित कर दिया था....चारू,कानू,जंगल जैसे इसके जन्मदाता अब उपर जा चुके हैं....

ये मनमोहन देसाई की फिल्म नहीं दिखा रहा हूं मैं। सच बता रहा हूं।
नक्सलवाद, जिसे आप चाहें तो माओवाद भी कह सकते हैं, उसको बचपन में ही अगवा कर लिया गया था। उसके जो बाप थे भारत में,वो व्यवस्था के खिलाफ खड़े हुए थे। नक्सलवाद को उन्होंने इसलिए पैदा किया था कि बड़ा होकर वो भारत की व्यवस्था बदल देगा। कृषि पर आधारित समाज में मौजूद सामंतवादी व्यवस्था को उल्टा लटका देगा। नक्सलवाद की विस्तृत अवधारणा की तरफ ध्यान खींचेने और शल्य चिकित्सा की तात्कालिक ज़रूरतों के लिए हथियार का इस्तेमाल भी हुआ था। खून बहाया गया था ताकि लाल रंग लोगों के जेहन में बैठ जाए। लेकिन व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई उन लोगों के खिलाफ भी तो थी, जो इस व्यवस्था की बेहद ताकतवर देन थे। अंग्रेजों से सीखे हुए लोकतंत्र के गुर अंग्रेजों के खिलाफ इस्तेमाल करके इस देश ने जो सीखा था, उसमें सशस्त्र क्रांति के लिए इतनी गुंजाइश भी नहीं थी शायद। नतीजा नक्सलवाद के जनक बहुत जल्दी पस्त हो गए। उसके बाद नक्सलवाद लावारिश हो गया। उसके बाद उसका अपहरण हो गया।

तब से लेकर आज तक नक्सलवाद, या चाहें तो आप उसे माओवाद कह सकते हैं, भटक रहा है। भारत के पूर्वी हिस्सों में आंध्र से लेकर नेपाल तक उसे भटकते हुए देखा गया है। उसपर अपहर्ताओं का कब्जा है। उसके अपहर्ता कपड़े से मुंह ढंककर रहते हैं। अपहर्ताओं के कई गुट हैं। एक साथ कई-कई गिरोह दावा करते हैं कि नक्सलवाद उनके पास है। वो किस्तों में फिरौती वसूलते हैं। कभी सरकार से फिरौती वसूलते हैं,कभी ठेकेदार से, कभी गांव के लोगों से, कभी शहर के लोगों से।

अब तो लोग-बाग ये भी कहने लगे हैं कि दरअसल अब नक्सलवाद है ही नहीं। वो मर चुका है। ये अपहर्ता लोग झूठ-मूठ अभिनय करते हैं कि नक्सलवाद उनके पास है,जिन्दा है। लेकिन सच तो ये है कि नक्सलवाद है। मैंने उसे अपनी आंखों से देखा है। मैंने उसे झारखंड के जंगली-आदिवासियों की आंखों में देखा है। मैंने उसे हवालात की सलाखों से सिर टकराते हुए देखा है। मैंने उसे भुंइनी की साड़ी में छिपते हुए देखा है। लेकिन उसके पास हथियार नहीं है। उसके पास पम्पलेट भी नहीं है। वो लाल झंडे के पास खड़ा हो जाता है, क्योंकि उसे इसके अलावा दूसरा रंग दिखता ही नहीं। कलर ब्लाइंडनेस। ये बात अपहर्ताओं को पता है। इसलिए वो लाल झंडे गाड़ देते हैं और लाल रंग फैला देते हैं। ताकि नक्सलवाद उनके पास चला आए और वो फिरौतियां वसूल सकें। अपनी बात मनवा सकें।

पहले ये लोग अलग-अलग झंडे गाड़ते थे, अलग-अलग लाल रंग फैलाते थे। बाद में इन लोगों ने एका बना लिया और ज्यादा लाल रंग फैलाने लगे। लाल रंग फैलाओ, नक्सलवाद को अपने पास बुलाओ और फिरौती वसूलो। फिरौती में रुपया लेते हैं, फिरौती में सलामी लेते हैं, फिरौती में वोट लेते हैं, फिरौती में हथियार लेते हैं, फिरौती में लाज लेते हैं, और भी बहुत कुछ लेते हैं। ये लोग धंधा भी करते हैं। नेता,ठेकेदार,मंत्री,इंजीनियर,ऑफिसर, किसान, शैतान,नादान हर तरह के ग्राहक हैं इनके पास। मैंने सुना है कि नक्सलवाद के अपहर्ताओं के पास बहुत पैसा है, बहुत हथियार है। महानगरों में इनकी कोठियां हैं, इनके बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं।

आप जाइये ना, लावालौंग जाइये। सब पता लग जाएगा। मगर वहां जाकर कुछ पूछना मत। चुपचाप चले आना। नक्सलवाद को देखना और चले आना। नक्सलवाद को छुड़ाने की कोशिश मत करना, नहीं तो मारे जाओगे। वो लोग पैनी नजर रखते हैं। जिसपर उन्हें ये शक हो जाएगा कि वो नक्सलवाद को छुड़ाने की सोचता है वो उसे मार डालेंगे। जिनपर उन्हें ये शक हो जाए कि वो नक्सलवाद को मारने की सोचता है, वो उसे भी मार डालेंगे। कितने लोग मारे गए, आपको पता नहीं है।

दरअसल अब नक्सलवाद समाजवाद बनना चाहता है। अपने बाप-दादाओं की तरह सभाओं में बैठना चहाता है, ताकि बूढ़ापे में वो पूंजीवाद बन सके और चैन से अपोलो अस्पताल में मर सके। लेकिन उसके अपहर्ता उसे बढ़ने नहीं देंगे, वो उसे ठोक-ठोककर छोटा बनाए रखेंगे। इसमें उनके ग्राहक उनकी मदद कर रहे हैं। बस इससे ज्यादा नहीं बताऊंगा। जय हिन्द।

No comments:

Post a Comment

शेयर