अजनबी की पहचान

Friday, May 21, 2010

चुनाव चुनाव चुनाव



झारखंड में विकल्पों की तलाश बेमानी है। किसी नेता में इतना माद्दा नहीं है कि वो खंडित जनादेश के बावजूद अपने लिए विधायकों से सम्मानजनक शर्तों पर समर्थन जुटा सके। व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं से लबरेज हर विधायक अपनी गोटी लाल करना चाहता है। मंत्रीपद से कम का सपना देखना विधायक अपनी हेठी समझते हैं।
मुझे व्यक्तिगत रूप से कम से कम तीन निर्दलीय विधायकों के बारे में जानकारी है कि जब जेएमएम-बीजेपी की सरकार बन रही थी, वो अपने मंत्रीपद के लिए लॉबिंग कर रहे थे। सोचिए उस वक्त निर्दलीयों की कोई ज़रूरत नहीं थी,फिर भी। जेएमएम में गुरूजी सिर्फ एक प्रतीक भर रह गए हैं। उनके तमाम चेले-चपाटे अब उनके जीते-जी उनके नाम का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा लेना चाहते हैं। हेमन्त सोरेन भी इसी राह पर हैं।

कांग्रेस-जेवीएम को अगर सरकार बनानी थी तो चुनाव के ठीक बाद बना सकते थे। ये अकेला सबसे बड़ा चुनाव पूर्व गठबंधन था। जनता ने जेवीएम औऱ कांग्रेस दोनों को नई ताकत दी थी। लेकिन उस वक्त उन्होंने कदम आगे नहीं बढ़ाया। एक तरह से बीजेपी-जेएमएम को वॉकओवर दे दिया। दो बड़े गठबंधनों के अलावा किसी में इतनी ताकत नहीं कि सरकार बना सकें।
ऐसे में सवाल उठता है कि वहां हो क्या रहा है ? गुरूजी की “कभी हां कभी ना’ आखिर कहां जाकर खत्म होगी। अगर अर्जुन मुंडा की सरकार बन भी गई तो क्या हासिल कर पाएगी ? कांग्रेस-जेवीएम की क्या भूमिका है? दोनों गठबंधनों के अलावा जो विधायक हैं वो क्या ऐंवे ही घुस आए हैं?
साफ है परिस्थितियां एक स्थाई और जनहित की सरकार के खिलाफ हैं। ऐसे में चुनाव ही विकल्प है। जनता को एक बार एहसास कराने की ज़रूरत है कि उसकी उपेक्षा उसको बर्बादी की तरफ लेकर जा रही है। मध्यावधि चुनाव होने चाहिए। जनता को पता लगना चाहिए कि इक्यासी सीटों वाली विधानसभा में बहुमत तय करने की ज़िम्मेदारी उसी की है। राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि गठबंधन की शक्ल में विकल्प जनता के आगे करें।
दिक्कत है तो बस इतनी कि जनता के वोट को अपने बाप की मिल्कियत समझने वाले विधायकों को अगर रोके तो कौन ? राजनीतिक दलों को बहुदलीय लोकतंत्र में खंडित जनादेश का सम्मान करना सिखाए तो कौन ? चुनाव के लिए पहल करे तो कौन ? मेरे खयाल से गैरराजनीतिक लोगों को इसमें आगे आना चाहिए। मीडियो को अपनी भूमिका निभानी चाहिए। जनमत को सामने लाना मीडिया का दायित्व है। जनमत सामने आना चाहिए। अगर जनता चाहती है तो एक बार फिर से चुनाव होना चाहिए।

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