अजनबी की पहचान

Tuesday, June 29, 2010

निराशा की लहरों में उमंग की तरंग

झारखंड में आमजन निराश है और खास लोग चाहते हैं कि ये माहौल बना रहे। दरअसल दस साल के इस राज्य में जो लोग उभरे हैं उनमें ज्यादातर में इस आत्मविश्वास की घोर कमी है कि उन्होंने जो हासिल किया है वो उसके लायक हैं। उन्हें लगता है कि वो निराशा के माहौल और मौकापरस्ती के हुनर की वजह से उभर पाए हैं। ऐसा लगना काफी हद तक स्वाभाविक है और ऐसे लोग झारखंड समाज के हर तबके के मौजूद हैं- राजनीति में, व्यवसाय में, सामाजिक क्षेत्र में, शिक्षा जगत में, यहां तक कि सिविल सेवा की कठिन बाधा लांघकर आने वाले नौकरशाह भी इस ग्रंथि से मुक्त नहीं हैं।

Thursday, June 24, 2010

प्रलय की तैयारी!

गर्मी सबके सिर चढ़कर बोल रही है। जहां बारिश हो चुकी है और मौसम ठीक हो गया है वहां भी गर्मी की ही चर्चा है। सच पूछिए तो लगता है जैसे ग्लोबल वार्मिंग अखबारों-किताबों से निकलकर बदन पर लिपट गया है। साल में एकाध दिन रिकार्ड तोड़ तापमान एक बात है और लगातार ऊंचे तापमान पर जीने की मजबूरी एक और बात। मन में सवाल उठता है कि क्या ये गर्मी प्रकृति का कोई संदेश देना चाहती है। विद्वान लोग प्रकृति से खिलवाड़ और संसाधनों के विवेकहीन दोहन के प्रति चेताया करते हैं, लेकिन अब तो लगता है खुद प्रकृति आगे आकर चेता रही है।

Tuesday, June 22, 2010

ढाई घर दाएं-बाएं-आगे-पीछे

शतरंज के मोहरों में राजा,वजीर,किश्ती,भिश्ती,प्यादा सब सेना का अंग होते हैं ,मगर चाल सबसे अनोखी है घोड़े की।
घोड़ा ढाई घर की चाल चलता है-बीच के मोहरों को लांघकर। घोड़ा मारता तो एक बार में एक ही मोहरा है, मगर डराता एक साथ आठ को है। इसलिए घोड़े की अगली चाल समझ में नहीं आती,भेजा खराब हो जाता है।
नीतीश कुमार शुरू से ढाई घर चलते रहे हैं। लालू इसको थोड़ा दूसरे तरीके से समझाने की कोशिश करते हैं। लालू कहते हैं कि नीतीश के पेट में दांत हैं , यानि जब वो किसी को निवाला बनाते हैं तो कोई तकलीफ नहीं देते , बड़े आराम से निगलते हैं-बिना दांत गड़ाए फिर जब शिकार पेट में चला जाता है तो आराम से चबा जाते हैं।

Saturday, June 5, 2010

भूल-चूक लेनी देनी

इ मेरी जिन्दगी का पहिला फिल्म समीक्षा है, इसलिए सबसे पहिले भूल-चूक लेनी देनी
प्रकाश झा जी का बिहार की राजनीति में एक्सपीरियेंस अच्छा नहीं रहा है.....इ तो आप लोग जानबे करते हैं। लेकिन इसका बदला उ पूरे हिन्दुस्तान की ऑडिएंस से लेंगे, इ हम नहीं जानते थे।

Thursday, June 3, 2010

इब्ने बतूता, बगल में जूता, पहने को करता है चुर्र




सोचिए !
झारखंड में राष्ट्रपति शासन लग चुका है। वजह, सरकार बनने की कोई भी संभावना नहीं है। विधानसभा को निलंबित रखा गया है। वो सिर्फ इसलिए कि अगर विधानसभा भंग कर दी जाती तो फालतू का हो-हल्ला मचता।

Tuesday, June 1, 2010

जागो झारखंड, नया सबेरा लाना है

राष्ट्रपति शासन, छे महीने पूरा होने से पहले एक बार फिर से राष्ट्रपति शासन। और बीच के महीनों में इस गैप का पूरा फायदा उठाने की कोशिश। ये राष्ट्रपति शासन एक गैप ही तो है- झारखंड के साढ़े तीन करोड़ लोगों के सपनों और उन सपनों को हासलि करने के लिए की गई कोशिश के बीच। ज़रा सोचिए - हम और आप झारखंड को उस मुकाम पर ले जाने के लिए क्या कर रहे हैं। क्या हम इसपर और उसपर सारी जिम्मेदारी फेंककर भाग नहीं रहे हैं।

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