झारखंड में आमजन निराश है और खास लोग चाहते हैं कि ये माहौल बना रहे। दरअसल दस साल के इस राज्य में जो लोग उभरे हैं उनमें ज्यादातर में इस आत्मविश्वास की घोर कमी है कि उन्होंने जो हासिल किया है वो उसके लायक हैं। उन्हें लगता है कि वो निराशा के माहौल और मौकापरस्ती के हुनर की वजह से उभर पाए हैं। ऐसा लगना काफी हद तक स्वाभाविक है और ऐसे लोग झारखंड समाज के हर तबके के मौजूद हैं- राजनीति में, व्यवसाय में, सामाजिक क्षेत्र में, शिक्षा जगत में, यहां तक कि सिविल सेवा की कठिन बाधा लांघकर आने वाले नौकरशाह भी इस ग्रंथि से मुक्त नहीं हैं।
Tuesday, June 29, 2010
Thursday, June 24, 2010
प्रलय की तैयारी!
Tuesday, June 22, 2010
ढाई घर दाएं-बाएं-आगे-पीछे
घोड़ा ढाई घर की चाल चलता है-बीच के मोहरों को लांघकर। घोड़ा मारता तो एक बार में एक ही मोहरा है, मगर डराता एक साथ आठ को है। इसलिए घोड़े की अगली चाल समझ में नहीं आती,भेजा खराब हो जाता है।
नीतीश कुमार शुरू से ढाई घर चलते रहे हैं। लालू इसको थोड़ा दूसरे तरीके से समझाने की कोशिश करते हैं। लालू कहते हैं कि नीतीश के पेट में दांत हैं , यानि जब वो किसी को निवाला बनाते हैं तो कोई तकलीफ नहीं देते , बड़े आराम से निगलते हैं-बिना दांत गड़ाए फिर जब शिकार पेट में चला जाता है तो आराम से चबा जाते हैं।
Saturday, June 5, 2010
Thursday, June 3, 2010
इब्ने बतूता, बगल में जूता, पहने को करता है चुर्र
Tuesday, June 1, 2010
जागो झारखंड, नया सबेरा लाना है

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