अजनबी की पहचान

Monday, August 2, 2010

पत्रकारिता का नया आयाम

पत्रकारिता कोईपेशा नहीं , ये तो एक प्रवृति
है। इस लिहाज से देखें तो जनसंचार के नए साधन जैसे कि मोबाइल,इंटरनेट एक क्रांति की शुरूआत हैं। भारत में और खास कर हिन्दी पट्टी में मेनस्ट्रीम की पत्रकारिता पर इनका दबाव अब दिखने लगा है। हालांकि संगठित तौर पर इन माध्यमों को भी पेशेवर रूप देने की कोशिश जारी है,लेकिन नेटवर्किंग के ज़रिए इसको लगातार चुनौतियां मिलती रहेंगी। देश में लाखों की संख्या में मौजूद पत्रकार अपनी नौकरी को गुलामी एक नया रूप समझने लगे हैं और उनके विद्रोह का रास्ता अब खुल चुका है। इसके अलावा करोड़ो की संख्या में जो लोग संचार माध्यमों से जुड़ रहे हैं, वो कहीं ना कहीं तथ्यों को सामने लाने में छोटी-छोटी भूमिकाएं भी निभा रहे हैं। कई लोगों ने तो जैसे जेहाद छेड़ दिया है।
इसमें सबसे ज्यादा ध्यान देनेवाली बात ये है कि इंटरनेट या मोबाइल के जरिए संवाद स्थापित करने वाला व्यक्ति प्रभावोत्पादक (effective) है। वो बेहद निजी पलों में से समय निकालकर, वयक्तिक रूप से शामिल होता है और दूसरों को प्रभावित करने की कोशिश करता है। जाहिर है वो जो कुछ ग्रहण करता है उसपर भी गंभीरता से अमल करने की कोशिश करेगा। यानि यहां संवाददाता और संवाद ग्रहण करने वाला दोनों एक साथ एक ही व्यक्ति में मौजूद होते हैं। हालाकि सूचना देने की प्रवृति अभी उतनी प्रबल नहीं हुई है, लेकिन इसके बीज फूटने लगे हैं।
मुख्तसर ये कि माध्यम की विशिष्टता को छोड़ दें तो पत्रकारिता के मूल सरोकार पर नए मीडिया का गहरा असर पड़ने वाला है। अब ये कितनी जल्दी कितना असर दिखाएगा ये इस बात पर निर्भर करता है कि आधारभूत संरचना के विकास में कितना वक्त लगता है। निजी भागीदारी और प्रतियोगिता के दौर में इसमें भी उत्साहवर्धक नतीजों की उम्मीद की जा सकती है। तो क्या साल दो हजार बारह-तेरह तक?

1 comment:

  1. सचमुच में जनसंचार के ये माध्यम हर तरह से सभी को प्रभावित कर रहे हैं, और लोगों की तुरंत जानने की भूख को भी मिटाते हैं. उन लोगों के लिए भी एक बेहतरीन प्लेटफोर्म है जो किसी मीडिया हाउस से नहीं जुड़े हुए हैं. और खास कर उनलोगों के लिए बहुत अच्छा माध्यम साबित होता है. जो राहुल महाजन को हर चैनल पर देख कर थक चुके हैं ... कम से कम यहाँ तो अपनी पसंद की खबर देखेंगे और प्रतिपुष्टि देंगे..

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