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Tuesday, July 19, 2016

झारखंड में निवेश की 5 चुनौतियां

झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास का बैंगलुरु और हैदराबाद में स्टार्ट अप और बड़े निवेशकों के बीच रोड शो और डॉयलाग क्या झारखंड के विकास की कड़ी साबित होगा या फिर टीम मोदी के पॉलिटिकल-इकॉनोमिक विजन का एक गिमिक साबित होगा। 
झारखंड इज ऑफ डूइंग बिजनेस में नंबर तीन पर, मुंबई में मेक इन इंडिया में मुख्यमंत्री रघुबर दास का बड़े निवेशकों को न्योता देना, झारखंड में इंन्वेस्टमेंट प्रमोशन के लिए बनाए गए एसपीवी में बड़े-बड़े उद्योगपतियों के नाम, राज्य में स्थानीयता नीति की घोषणा, एसपीटी और सीएनटी एक्ट में फेरबदल, सिंगल विंडो सिस्टम,  नक्सलियों के लिए लुभावनी सरेंडर पॉलिसी, प्रधानमंत्री का यह कहना कि विकास देखना है तो झारखंड जाइये  - यह सबकुछ झारखंड को प्रधानमंत्री मोदी के आर्थिक विजन का मॉडल समझने और समझाने की तरकीब नजर आती है।  

झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास का बैंगलुरु और हैदराबाद में स्टार्ट अप और बड़े निवेशकों के बीच रोड शो और डॉयलाग क्या झारखंड के विकास की कड़ी साबित होगा या फिर टीम मोदी के पॉलिटिकल-इकॉनोमिक विजन का एक गिमिक साबित होगा। असल जवाब तो समय देगा और शायद हां या ना की बजाए मिला जुला जवाब देगा, लेकिन 5 ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें गंभीरता से काम शुरू हुआ है और वही रघुबर सरकार के प्रयासों को सफल कर सकते हैं।

1- निवेश के लिए जमीन जुटाने की चुनौती - झारखंड में जमीनें विशेष कानूनों से संरक्षित हैं। छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्स में हल्के सुधार कर रघुबर सरकार ने जमीन अधिग्रहण की जमीन तैयार कर दी है, लेकिन अधिग्रहण को व्याहारिक जामा पहनाना अभी बाकी है। छोटे निवेशकों के लिए लैंड बैंक की सुविधा कितनी कारगर है इसका टेस्ट होना भी बाकी है।

2- कानून-व्यवस्था के दुश्मन नक्सली - झारखंड में नक्सलियों और स्प्लिंटर ग्रुप्स का खतरा आज भी बना हुआ है। बड़ी घटनाएं जरूर कम हुई हैं लेकिन लेवी के नाम पर रंगदारी का खेल व्यवस्थित रुप ले चुका है और इसमें प्रशासन, राजनीति से लेकर पुलिस और स्थानीय पूंजीपंतियों ने अपने लिए जगह बना रखी है। बाहर के निवेशक इन झमेलों में पड़ना नहीं चाहेंगे। 

3- बुनियादी ढांचे में प्रगति - झारखंड में बुनियादी ढांचा आज भी प्रारंभिक स्थिति में है। हाईवे प्रोजेक्टर विलंब से चल रहे हैं। बिजली है लेकिन ट्रांस्मिशन लाइनों की घोर कमी है। नए - पुराने जलाशयों के प्रति कोई गंभीरता दिखाई नहीं देती। राज्य में वित्तीय आधार संरचना सिरे से गायब है। स्वास्थ्य-शिक्षा और तकनीकि शिक्षा की स्थिति बहुत खराब है। यही वजह है कि निवेश के लिए जरूरी मानव संसाधन के मामले में झारखंड पूरी तरह से बाहर के राज्यों पर निर्भर है। कानून-व्यवस्था और सामान्य प्रशासन की ऐसी हालत में बाहरी लोग झारखंड को अपनी करियर डेस्टिनेशन चुनने को तैयार होंगे, इसमें शक है।

4- सुशासन और माहौल - निवेशक सामान्य वातावरण पर अपने तरीके से शोध करता है। झारखंड में पहले से चले आ रहे बड़े, मध्यम और छोटे उद्योग अपनी समस्याओं से जूझ रहे हैं। जिन लोगों ने यहां पहले से पैसा लगा रखा है उन्हें चिन्ता सता रही है। निवेशक के सामने सरकार के विभिन्न अंगों का रोड शो कर सुशासन का ढोंग तो किया जा सकता है, लेकिन जमीन पर उतरते ही निवेशक के पांव उखड़ जाएंगे।  

5- राजनीतिक अस्थिरता - इसमें कोई दो राय नहीं कि टीम मोदी रघुबर सरकार की स्थिर और मजबूत स्थिति दर्शाने के लिए हर उपाय कर रही है, लेकिन झारखंड की राजनीति में अस्थिरता एक अनिवार्य गुण की तरह न्यस्त है। अगले चुनाव में अगर सरकार बदल जाती है तो निवेशक का पैसा बीच भंवर में फंसेगा। नई सरकार को नए सिरे से डील करना परियोजना लागत में गैरजरूरी बढ़ोतरी कर देगा। मौजूदा सरकार में भी मुख्यमंत्री की टीम अलग काम करती हुई दिखती है और बाकी मंत्री अलग। 

उम्मीद की किरण अगर कहीं दिखाई देती है तो वो है पावर और भारी उद्योगों के क्षेत्र में। झारखंड एक खनिज सम्पन्न राज्य है। यहां अकुशल या सेमी ट्रेंड मानव संसाधन उपलब्ध है। राज्य के पास अतिरिक्त बिजली है। इसलिए इन क्षेत्रों में निवेश करनेवालों के लिए रघुबर सरकार का न्योता काम की चीज साबित हो सकता है। अन्यथा झारखंड में निवेश मुंगेरी लाल के हसीन सपनों से ज्यादा कुछ नहीं। 

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