अदरा के भोजन पर बैठे थे.....खीर बहुत बढ़िया था....
वैसे जो लोग नहीं जानते उ जान लें कि बरसात के दिनों में एक नक्षत्र
आता है आर्द्रा....उसके रहते भर में किसान लोग उत्सव के रूप में, सुविधा के हिसाब
से, किसी एक दिन को चुनकर.....खास भोजन पकाते और खाते हैं....ये बहुत पुरानी
परंपरा है...और खाने से संबंधित है इसलिए अभी भी चली आ रही है.....हमारे जैसे कुछ
शहरी लोग भी परंपरा के नाम पर पारंपरिक भोजन का आनंद लेने से नहीं चूकते.....भोजन
में होती है खीर...पूड़ी.....कटहल की तरकारी और आम....
तो खीर बढ़िया बनी थr....दाल-भरके पूरी भी बनाई गई थी....सब्जी रसदार
थी....आम तो था ही.....हरी मिर्च का तीखा अचार भी था....आधा खाने के बाद खयाल आया
कि दाल-भरी पूरी में खीर लपेटकर तो खाया ही नहीं....तो खाने लगे और बतियाने
लगे....
‘खीर तो थोड़ा लटपट रहना ही चाहिए’
‘नहीं तो दूध-भात जैसा लगने लगता है’
दूध-भात भी क्या चीज थी.....बिल्कुल मैगी जैसी....
चंदा मामा आरे आव
आरे आव पारे आव
नदिया किनारे आव
सोने की कटोरिया में
दूध भात लेले आवा
बउवा के मुंहवां में - घुटूक
सोने की कटोरिया में दूध भात की ब्रांडिंग माएं खुद करती थीं...और घुटूक
- बोलकर कुछ भी खिला देती थी...हमको कभी पसंद नहीं आया.....मिडिल क्लास का staple
child diet…..ठीक
मैगी की तरह...
मैगी भी वही चीज थी...हमको कभी स्वाद नहीं आया...लेकिन ब्रांड गजब
था....दो मिनट में रेडी....कामचलाउ स्वाद....और जबर्दस्त ब्रांडिंग....मैगी हमरा
होश संभालने के बाद की चीज है....टीवी के साथे-साथ आई थी....विज्ञापन आता था....बच्चों
को जब भूख लगी तो बस एक ही नाम....मैगी-मैगी-मैगी....नेस्ले ने उस समय के हिसाब से
जबर्दस्त ब्रांडिंग की थी...और अब रॉयल्टी खा रही थी....
मुझे लगता है मैगी दुर्घटना का शिकार हो गई...वर्ना हम क्या-क्या नहीं
खा-पी रहे हैं आजकल....मैगी कार्पोरेट तंत्र के खेल का शिकार भी हो सकती
है....बाजार में प्रतियोगी गला काटने का मौका देखता रहता है....प्रतियोगी कौन है
नेस्ले का....और मिजाज क्या है अभी देश का.....एक बहुराष्ट्रीय कंपनी का यूं मजबूर
हो जाना....कई बातें सोचने पर मजबूर करता है....
बहरहाल...हम तो मैगी खाते नहीं थे.....दूध भात मजबूरी में कभी-कभी खाए
हैं....लेकिन अदरा के भोजन की बात और खासकर दलभरी पूरी में खीर लपेटकर....आ हा हा
!
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