अजनबी की पहचान

Monday, August 1, 2016

बाजार वाली Hindi और हिन्दी का बाजार - 2


बाजार का पिछलग्गू लोकतंत्र का नायक नहीं हो सकता। नायकत्व तो बाजार को दिशा देने में निहित है। भारत के मोदी तत्व में कितनी दृष्टि है, इसकी परीक्षा जारी है। 

31 जुलाई 2016 को सबसे लोकप्रिय सर्च इंजन Google ने प्रेमचंद के स्केच को doodle पेज पर जगह दी। भारतीय बाजार की यह अपने तरह की समझ है जिसमें प्रेमचंद के बहाने हिन्दी जगत को संदेश भी दिया गया है। साफ है कि न सिर्फ Google बल्कि दुनियाभर का बाजार भारत से हाथ मिलाने के लिए भारतीयता सीख रहा है, लोगों से जुड़ रहा है। वैसे Google के रणनीतिकार क्या समझते हैं, यह बहुत बड़ा रहस्य नहीं हो सकता लेकिन हम भारतीय लोग अब तक इस तरीके से नहीं सोच पाए हैं। हम आज भी अपने ही प्रश्नों में उलझे हुए हैं।
हिन्दी क्या भारत की अनेक भाषाओं में से एक भाषा भर है या यह भारतीय भाषाओं की श्रृंखला की आधुनिकतम और सबसे सशक्त कड़ी है? 

Thursday, July 21, 2016

रघुबर मिनी मोदी!


बहुत मुमकिन है कि विपक्षी दल आने वाले दिनों में झारखंड के मुख्यमंत्री के निवेश प्रोत्साहन दौरों के खर्च का व्यौरा सार्वजनिक करें और उनसे पूछा जाए कि बदले में मिला क्या। तब शायद ही रघुबर दास के पास बताने के लिए बहुत कुछ होगा। 
झारखंड में निवेश प्रोत्साहन के लिए देश के महानगरों का दौरा कर रहे मुख्यमंत्री रघुबर दास पर चुटकी लेते हुए पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन ने कहा है कि रघुबर दास मिनी मोदी हैं। मोदी समर्थकों के नजरिए से यह टिप्पणी एक कॉम्प्लिमेंट लगती है, लेकिन इसके ठीक विपरीत मोदी विरोधियों के मन में रघुबर दास के प्रति उन खास आलोचनाओं की पुष्टि होती हुई दिखती है जिनसे मोदी को शुरू से घेरा जा रहा है। बहुत मुमकिन है कि विपक्षी दल आने वाले दिनों में झारखंड के मुख्यमंत्री के निवेश प्रोत्साहन दौरों के खर्च का व्यौरा सार्वजनिक करें और उनसे पूछा जाए कि बदले में मिला क्या। तब शायद ही रघुबर दास के पास बताने के लिए बहुत कुछ होगा। 

Wednesday, July 20, 2016

झारखंड : निवेश की राह में उग्रवाद के चलते 5 बाधाएं

झारखंड सरकार कुछ बड़े निवेशकों के साथ पहले दौर का एमओयू साइन कर सकती है। लेकिन निवेशक जमीन पर उतरने को तैयार हों इसके लिए इस समस्या की जड़ पर यानि उग्रवादियों की आर्थिक जड़ पर चोट जरूरी है।

झारखंड में निवेशकों को आकर्षित करने के तमाम उपाय किए जा रहे हैं। सोच यह है कि बड़े और छोटे निवेशक आएंगे तो रोजगार और आय के स्रोत पैदा होंगे, अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी और विकास होगा। सोच बहुत अच्छी लगती है और राज्य के लोग भी यही चाहते हैं। कम से कम सरकार चला रही बीजेपी के वोटर तो यही चाहते हैं। रघुबर सरकार को नरेन्द्र मोदी विकास का एक मॉडल बनाना चाहते हैं। इसलिए केन्द्र सरकार झारखंड में निवेश और विकास का रास्ता तैयार करने के प्रति गंभीर है। लेकिन फिर भी यकीन नहीं होता कि यहां अच्छे दिन आएंगे।
उधर रघुबर दास हैदराबाद में निवेशकों के सामने झारखंड की क्षमता शोकेस कर रहे थे इधर रांची में पांच राज्यों के झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और फश्चिम बंगाल पुलिस के आला अधिकारी नक्सलियों के खिलाफ समन्वय के लिए बैठक कर रहे थे। नक्सलियों के बड़े संगठन सीपीआई-माओवादी कमजोर हो चुका है और अब इसकी कमर तोड़ देने की कोशिश हो रही है। भारी-भरकम प्रोत्साहन वाले आत्मसमर्पण पैकेज ऑफर किए जा रहे हैं। सीआरपीएफ और राज्यों की पुलिस लगातार ऑपरेशन चला रही है। लेकिन सवाल बना हुआ है कि झारखंड जैसे राज्य में नक्सलियों के खौफ का जो आलम है वह इतनी राहत से हल्का हो जाएगा। जमीनी हालात कहते हैं कि इन पांच वजहों से उग्रवाद झारखंड में निवेशकों का रास्ता रोके खड़ा है - 

Tuesday, July 19, 2016

झारखंड में निवेश की 5 चुनौतियां

झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास का बैंगलुरु और हैदराबाद में स्टार्ट अप और बड़े निवेशकों के बीच रोड शो और डॉयलाग क्या झारखंड के विकास की कड़ी साबित होगा या फिर टीम मोदी के पॉलिटिकल-इकॉनोमिक विजन का एक गिमिक साबित होगा। 
झारखंड इज ऑफ डूइंग बिजनेस में नंबर तीन पर, मुंबई में मेक इन इंडिया में मुख्यमंत्री रघुबर दास का बड़े निवेशकों को न्योता देना, झारखंड में इंन्वेस्टमेंट प्रमोशन के लिए बनाए गए एसपीवी में बड़े-बड़े उद्योगपतियों के नाम, राज्य में स्थानीयता नीति की घोषणा, एसपीटी और सीएनटी एक्ट में फेरबदल, सिंगल विंडो सिस्टम,  नक्सलियों के लिए लुभावनी सरेंडर पॉलिसी, प्रधानमंत्री का यह कहना कि विकास देखना है तो झारखंड जाइये  - यह सबकुछ झारखंड को प्रधानमंत्री मोदी के आर्थिक विजन का मॉडल समझने और समझाने की तरकीब नजर आती है।  

Monday, July 18, 2016

साम्प्रदायिकता : भारत की मूलभूत कुंठा

साम्प्रदायिकता भारत की एक मूलभूत कुंठा है जो आम भारतीय मनोजगत पर अवसाद के बादलों की तरह हमेशा मंडराती रहती है। देश के जिस हिस्से पर बादल संघनित होकर बरसता है वहां बहस खड़ी हो जाती है, झगड़े हो जाते हैं, दंगे हो जाते हैं। विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक भारतीयता इस कुंठा के साथ जीने को अभिशप्त है किन्तु इसका दूसरा पहलु भी है।
बसुधैव कुटुम्बकम किसी धर्म विशेष की इजाद हो ही नहीं सकता। दरअसल, भारत ने धर्म और आध्यात्म का फर्क सबसे पहले समझा और शायद सिर्फ भारत ने ही यह फर्क समझा। जिसे हम सनातन धर्म कहते हैं उसके पीछे की आध्यात्मिकता अपने आप में तमाम प्रश्नों का उत्तर है। भारत ने धर्म के पर्दे से झांकते आध्यात्म को देखने की समझ बनाई है और यह दार्शनिकता आम भारतीय में जेहन न्यस्त है। दरअसल, एक आम भारतीय के लिए यही सहज जीवन शैली है। बुद्ध, महावीर, ईसा मसीह, पैगम्बर मुहम्मद, नानक यहां सभी ने अपने लिए जगह बनाई और सनातन धर्म के साथ सहअस्तित्व बनाया। विविधता, विशाल आबादी और शांति (देश के स्तर पर) - यह कोई आज की बात नहीं है। विश्व मानव के लिए यही एक निमंत्रण है - जीवन को पूरा समझने और जीने का। इसीलिए दुनियाभर के मानवतावादी, विचारक, वैज्ञानिक, प्रशासक, कलाकार इत्यादि इतिहास के हर कालखंड में भारत को गंभीरता से देखते हैं। विश्व बाजार भी बार-बार भारत को गौर से देखता है। भौगोलिक तौर पर अलग-अलग विश्व के भूखंडों को सबसे पहले व्यापारियों ने ही जोड़ा। विश्व बाजार बार-बार भारत आता है। प्राचीन काल और मध्यकाल में भारत के विश्व से जो संबंध बने उनकी शुरुआत भी व्यापारियों ने की। आधुनिक विश्व में भी बाजार कभी पूंजीवादी वैश्वीकरण की हवा पर सवार होकर तो कभी ईस्ट इंडिया कंपनी की साम्राज्यवादी महत्वकांक्षा लेकर। बाजार के पीछे यहां की तमाम उम्मीदों और जरूरतों के साथ अपने तरीके से तालमेल बिठाता है। भारत की चिर कुंठाओं से संघर्ष करता है लेकिन एक मकाम पर आकर सवालों के जवाब देना बंद कर देता है। सांप्रदायिकता जैसे सवाल बाजार के लिए घातक हैं ।
दिलचस्प है कि सांप्रदायिकता कभी बाजार से या वसुधैव कुटुम्बकम की विचारधारा से नहीं टकराती। सांप्रदायिकता टकराती है सांप्रदायिकता से। यह बहुस्तरीय टकराव है।  इसे आधुनिक इतिहास के बेहतरीन विश्लेषक विपिन चंद्रा की स्थापनाओं से समझा जा सकता है। कैसे भारत अपनी विविधताओं में जीते हुए सांप्रदायिकता की गुंजाइश रखता है, कैसे उसमें संप्रदायवाद की घास हमेशा उगी रहती है, कैसे उस घास के बीच-बीच में स्वार्थ की फसल उगाई जाती है, कैसे वह फसल विष का संचार करती देती है और क्यों यह विष हमारे दिमाग में भी घुलने लगता है।

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